• Kshatriya Rajput History ( क्षत्रिय राजपूत इतिहास ) •

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Tuesday 21 February 2017

• महाराणा प्रताप जी की जीवनी •

महाराणा प्रताप •

शासन:- 1572 – 1597
राज तिलक :- 1 मार्च 1572
पूरा नाम:- महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया
पूर्वाधिकारी:- उदयसिंह द्वितीय
उत्तराधिकारी:- महाराणा अमर सिंह
जीवन संगी :- (11 पत्नियाँ)
संतान:- अमर सिंह
भगवान दास
(17 पुत्र)
राज घराना:- सिसोदिया
पिता:- उदयसिंह द्वितीय
माता:- महाराणी जयवंताबाई
धर्म :-सनातन धर्म

महाराणा प्रताप सिंह ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदानुसार 9 मई 1540–19 जनवरी 1597) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलो को कही बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कँवर के घर हुआ था। 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 2०,००० राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 8०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अशव दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,००० लोग मारे गएँ। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंतीत हुई। 25,००० राजपूतों को 12 साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ।

महाराणा प्रताप जी की जीवनी •

महाराणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ।

महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियाँ की थी उनके पत्नियों और उनसे प्राप्त उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम है:-

महारानी अजब्धे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास
अमरबाई राठौर :- नत्था
शहमति बाई हाडा :-पुरा
अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह
रत्नावती बाई परमार :-माल,गज,क्लिंगु
लखाबाई :- रायभाना
जसोबाई चौहान :-कल्याणदास
चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह
सोलनखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाल
फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा
खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह
महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। अकबर ने महाराणा प्रताप को समझाने के लिये क्रमश: चार शान्ति दूतों को भेजा।

जलाल खान कोरची (सितम्बर 1572)
मानसिंह (1573)
भगवान दास (सितम्बर–अक्टूबर 1573)
टोडरमल (दिसम्बर 1573)

हल्दीघाटी का युद्ध •

यह युद्ध 17 जून 1576 ईस्वी में मेवाड तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे -हकीम खाँ सूरी।

इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की।वहीं ग्वालियर नरेश 'राजा रामशाह तोमर' भी अपने तीन पुत्रों 'कुँवर शालीवाहन', 'कुँवर भवानी सिंह 'कुँवर प्रताप सिंह' और पौत्र बलभद्र सिंह एवं सैंकडों वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चिरनिद्रा में सो गया।

इतिहासकार मानते हे कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए अकबर के विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितने देर तक टिक पाते पर एेसा कुछ नहीं हुए ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुग़लो के छक्के छुड़ा दिया थे ओर सबसे बड़ी बात यहा हे की युद्ध आमने सामने लड़ा गया था! महाराणा कि सेना ने मुगल कि सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था ओर मुगल सेना भागने लग गयी थी।

• सफलता और अवसान •

ई.पू. 1579 से 1585 तक पूर्व उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशो में विद्रोह होने लगे थे ओर महाराणा भी एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे अतः परिणामस्वरूप अकबर उस विद्रोह को दबाने मे उल्जा रहा और मेवाड़ पर से मुगलो का दबाव कम हो गया। इस बात का लाभ उठाकर महाराणा ने ई.पू. 1585 में मेवाड़ मुक्ति प्रयत्नों को ओर भी तेज कर लिया। महाराणा की सेना ने मुगल चौकियां पर आक्रमण शरु कर दिए और तुरंत ही उदयपूर समेत 36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया। महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया , उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था , पूर्ण रूप से उतने ही भूमि भाग पर अब उनकी सत्ता फिर से स्थापित हो गई थी। बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर उसमें कोई परिवर्तन न कर सका। और इस तरह महाराणा प्रताप समय की लंबी अवधि के संघर्ष के बाद मेवाड़ को मुक्त करने मे सफल रहे और ये समय मेवाड़ के लिए एक स्वर्ण युग साबित हुआ। मेवाड़ पे लगा हुआ अकबर ग्रहण का अंत ई.पू. 1585 में हुआ। उसके बाद महाराणा प्रताप उनके राज्य की सुख-सुविधा मे जुट गए , परंतु दुर्भाग्य से उसके ग्यारह वर्ष के बाद ही 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड मे उनकी मृत्यु हो गई।

महाराणा प्रताप सिंह के डर से अकबर अपनी राजधानी लहौर लेकर चला गया और महाराणा के स्वर्ग सीधरने के बाद अगरा ले आया।

'एक सच्चे राजपूत, शूरवीर, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि के रखवाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदैव के लिए अमर हो गए।

महाराणा प्रताप सिंह के मृत्यु पर अकबर की प्रतिक्रिया •

अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था, पर उनकी यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत द्वेष का परिणाम नहीं था, हालांकि अपने सिद्धांतो और मूल्यो की लड़ाई थी। एक वह था जो अपने क्रूर साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था , जब की एक तरफ यह था जो अपनी भारत माँ की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहा था। महाराणा प्रताप के मृत्यु पर अकबर को बहुत ही दुःख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक था ओर अकबर जनता था कि महाराणा जैसा वीर कोई नहीं हे इस धरती पर। यह समाचार सुन अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो गया और उसकी आँख में आंसू आ गए।

महाराणा प्रताप के स्वर्गावसान के वक्त अकबार लाहौर में था और वहीं उसे खबर मिली कि महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई है। अकबर की उस वक्त की मनोदशा पर अकबर के दरबारी दुरसा आढ़ा ने राजस्थानी छंद में जो विवरण लिखा वो कुछ इस तरह है:-

अस लेगो अणदाग पाग लेगो अणनामी

गो आडा गवड़ाय जीको बहतो घुरवामी

नवरोजे न गयो न गो आसतां नवल्ली

न गो झरोखा हेठ जेठ दुनियाण दहल्ली

गहलोत राण जीती गयो दसण मूंद रसणा डसी

निसाा मूक भरिया नैण तो मृत शाह प्रतापसी

अर्थात्

हे गुहिलोत राणा प्रतापसिंघ तेरी मृत्यु पर शाह यानि सम्राट ने दांतों के बीच जीभ दबाई और निश्वास के साथ आंसू टपकाए। क्योंकि तूने कभी भी अपने घोड़ों पर मुगलिया दाग नहीं लगने दिया। तूने अपनी पगड़ी को किसी के आगे झुकाया नहीं, हालांकि तू अपना आडा यानि यश या राज्य तो गंवा गया लेकिन फिर भी तू अपने राज्य के धुरे को बांए कंधे से ही चलाता रहा। तेरी रानियां कभी नवरोजों में नहीं गईं और ना ही तू खुद आसतों यानि बादशाही डेरों में गया। तू कभी शाही झरोखे के नीचे नही खड़ा रहा और तेरा रौब दुनिया पर गालिब रहा। इसलिए मैं कहता हूं कि तू सब तरह से जीत गया और बादशाह हार गया।

अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपना पूरा जीवन का बलिदान कर देने वाले ऐसे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप और उनके स्वामिभक्त अश्व चेतक को शत-शत कोटि-कोटि प्रणाम।

|| जय महाराणा ्रताप ||

संदर्भ से - विकीपीडिया


6 comments:

  1. महाराणा प्रताप एक साहसी राजा थे उनकी जीवनी शेयर करने के लिए आपका शुक्रिया.

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  2. जय महाराणा

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  3. महानुभाव हुकूम
    यदि पुर्ण सत्य जानकारी उपलब्ध ना हो तो इस प्रकार काल्पनिक शब्दों का मेल ना किया जावे हुकूम
    माना कि आपके द्वारा लिखा/दिया गया जानकारी 60% सही है किन्तु
    बचपन मे किका कहा जाता था
    सिसोदिया राजा थे
    ऐसा लिखकर महापुरुषों व उनकी वास्तविक जीवन का कभी अपमान नहीं किया जावे हुकूम

    पुर्ण सत्य होकर यह प्रमाणित किया जा चुका है कि बचपन मे किका नहीं कहा जाता था
    किका वास्तविक रुप मे एक क्षेत्रवार भाषायी शब्द है जो संबधित क्षेत्र में प्रायः सभी बच्चों के लिये उनको संबोधित करने हेतु काम मे लिया जाने वाला शब्द है न कि सिर्फ महाराणा जी के लिये ही !!
    सिसोदिया शब्द भी आपके द्वारा गलत लिखा गया है हुकूम
    जब सिसोदिया शब्द अर्थात अन्तिम सिसोदिया महारावल 1303 मे ही समाप्त हो गये थे तब आपके लेखन अनुसार दुबारा कहाँ से आगे हुकूम????
    प्रातः स्मरणीय वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह जी शिशोदिया शिशोदा मेवाड़ राजपुताना अखंड भारतवर्ष के परम प्रतापी महाराणा थे सिसोदिया नहीं

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  4. अभी तक आपके लिखे भ्रामक लेखन मे आवश्यक विषय-वस्तु का सुधार नही किया गया है हुकूम कृपया शीघ्रता शिघ्र शब्दों में उचित सुधार करवावें ।।
    @ शिशोदा 'मेवाड़'

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